भादरा : बागियों की धरती
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भादरा : बागियों की धरती

23 नवंबर 2025 को 06:16 pm बजे0

भादरा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में एक ऐतिहासिक कस्बा है। इसका इतिहास वैदिक से लेकर महाभारत काल और मुगलिया सल्तनत से लेकर राजे रजवाड़ों के दौर तक फैला है। अनेक इतिहासकारों ने बार बार कहा है जांगल प्रदेश के उत्तरी छोर पर बसा भादरा, भादरा व नोहर का यह इलाका वैदिक काल में सप्तसैंधव क्षेत्र का हिस्सा था जिसे हिरण्यवती, दृषद्वती,कौषिकी, रोहित व सरस्वती जैसी सात नदियां सींचती थीं। इस इलाके में मिलने वाले शंख, सीपियां, ठीकरियां व नर कंकाल इस बात का प्रमाण हैं कि किसी समय यहां मानव सभ्यता फली फूली थी। ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब दृषदवती नदी हिसार,भादरा,नोहर,रावतसर होते हुए सूरतगढ के पास सरस्वती नदी में मिलती थी। सार यही है कि यह वैदिक युग में इस इलाके में एक उच्च कोटि की सभ्यता फली फूली थी जिसे सात अलग अलग नदियों का पानी सींचता था।

किवदंती है कि महाभारतकाल में यह इलाका कुरू प्रदेश में आता था और अपने बनवास काल में पांडव नोहर के पास पांडूसर गांव में रहे थे। हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है लेकिन नोहर के करोती व सोती के थेहड़ों में मिले गेरुए रंग के मृदभांड महाभारतकालीन माने जाते हैं।

भादरा का मौजूदा नाम भी कहीं न कहीं महाभारत काल से ही निकला है। इतिहास की किताबों के अनुसार महाभारत काल में भद्रक जनपद था। इस जनपद की पहचान अपर भद्रक व पूर्व भद्रक, दो अलग अलग राज्यों के रूप में थी। इनमें से पूर्व भद्रक की भद्र नामक नगरी थी। भादरा शब्द संभवत: वहीं से निकला है। यह भी कहा जाता है कि भादरा नाम भद्रा, भद्र या परिभद्र से आया। जाट इतिहास में भद्रकों को भादरा का निवासी लिखा गया है। हालांकि आधिकारिक रूप से कोई तथ्य इस बारे में नहीं है। 1200 ईस्वी के बाद दइया जाति के शासकों के समय भादरा का नाम रताखेड़ा था। पाणिनी अष्टाध्यायी के अनुसार पांचालों के पड़ोसी जनपदों में एक भद्रक जनपद था। यह दो भागों में बंटा था और इसकी एक राजधानी इरावती या घग्गर के किाने भद्र नामक नगरी थी जो आज भादरा कहलाती है। (bhadra city of rajasthan)

पूरी जानकारी के लिए कृपया यह वीडियो देखें। आभार।

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