व्याधि पर कविता
व्याधि पर कविता
साहित्यिक पत्रिका कथादेश के जून 2012 अंक में शालिनी माथुर ने एक आलेख ‘व्याधि पर कविता या कविता की व्याधि’ लिखा. इस आलेख में उन्होंने अनामिका और पवन करण की स्तन विषय वाली कविता पर टिप्पणी की थी. इससे लंबी बहस शुरू हो गई. कथादेश के जुलाई अंक में ही विशेषकर इसी मुद्दे को लेकर टीका टिप्पणी रही. अनामिका का लंबा चौड़ा खत भी छपा. सोशल मीडिया में इस पर खूब चर्चा हुई. पवन करण की कविता स्तन है जबकि अनामिका ने ब्रेस्ट कैंसर लिखी है. ब्रेस्ट कैंसर (वबिता टोपो की उद्दाम जिजीविषा को निवेदित) दुनिया की सारी स्मृतियों को दूध पिलाया मैंने, हाँ, बहा दीं दूध की नदियाँ! तब जाकर मेरे इन उन्नत पहाड़ों की गहरी गुपफाओं में जाले लगे! ‘कहते हैं महावैद्य खा रहे हैं मुझको ये जाले और मौत की चुहिया मेरे पहाड़ों में इस तरह छिपकर बैठी है कि यह निकलेगी तभी जब पहाड़ खोदेगा कोई! निकलेगी चुहिया तो देखूँगी मैं भी सर्जरी की प्लेट में रखे खुदे-फुदे नन्हे पहाड़ों से हँसकर कहूँगी-हलो, कहो, कैसे हो? कैसी रही? अंततः मैंने तुमसे पा ही ली छुट्टी! दस बरस की उम्र से तुम मेरे पीछे पड़े थे, अंग-संग मेरे लगे ऐसे, दूभर हुआ सड़क पर चलना! बुल बुले, अच्छा हुआ,फूटे! कर दिया मैंने तुम्हें अपने सिस्टम के बाहर। मेरे ब्लाउज में छिपे, मेरी तकलीफों के हीरे, हलो। कहो, कैसे हो?’ जैसे कि स्मगलर के जाल में ही बुढ़ा गई लड़की करती है कार्यभार पूरा अंतिम वाला- झट अपने ब्लाउज से बाहर किए और मेज पर रख दिए अपनी तकलीफ के हीरे! अब मेरी कोई नहीं लगतीं ये तकलीफें, तोड़ लिया है उनसे अपना रिश्ता जैसे कि निर्मूल आशंका के सताए एक कोख के जाए तोड़ लेते हैं संबंध और दूध का रिश्ता पानी हो जाता है! जाने दो, जो होता है सो होता है, मेरे किए जो हो सकता था-मैंने किया, दुनिया की सारी स्मृतियों को दूध पिलाया मैंने! हाँ, बहा दीं दूध की नदियाँ! तब जाकर जाले लगे मेरे उन्नत पहाड़ों की गहरी गुफाओं में! लगे तो लगे, उससे क्या! दूधो नहाएँ और पूतों फलें मेरी स्मृतियाँ!