अनामिका

जीवन के रंग

अनामिका

9 फ़रवरी 2015 को 12:55 am बजे0

चर्चित कवयित्री अनामिका का जन्‍म 17 अगस्त 1961 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिला में हुआ. उन्‍होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अँग्रेजी साहित्य में एमए, पी.एचडी. और डी० लिट् किया है. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्‍यवती कालेज के अँग्रेजी विभाग में अध्‍यापन करती हैं. उनके मुख्‍य कविता संग्रह हैं – गलत पते की चिटठी, बीजाक्षर, अनुष्‍टुप, अब भी वसंत को तुम्‍हारी जरूरत है, दूब-धान आदि. अनामिका की कविताओं में अपने समय का स्‍त्री विमर्श सर्वाधिक सशक्‍त जमीन पाता है – ”इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई एक अदृश्य टहनी से टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें चींखती हुई चीं-चीं ‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं– किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं अगरधत्त जंगल लताएं! खाती-पीती, सुख से ऊबी और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ. फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं.’ (कनखियाँ इशारे, फिर कनखी) बाक़ी कहानी बस कनखी है. हे परमपिताओं, परमपुरुषों– बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो! ” उनकी कविताओं के रूसी भाषा में अनुवाद हुए हैं. उन्‍हें राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजाकुमार माथुर पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान द्विजदेव सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. उनकी अन्‍य पुस्‍तकें हैं- पोस्ट-एलियट पोएट्री : अ वोएज फ्रॉम कॉन्फ्लिक्ट टु आइसोलेशन (आलोचना), डन क्रिटिसिज्म डाउन द एजेज (आलोचना), ट्रीटमेंट ऑफ लव ऐण्ड डेथ इन पोस्टवार अमेरिकन विमेन पोएट्स (आलोचना), समकालीन अंग्रेजी कविता (अनुवाद), पर कौन सुनेगा (उपन्यास). मन कृष्ण : मन अर्जुन (उपन्यास), प्रतिनायक (कथा संग्रह).

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